धरती हमारी माता है: चीफ़ सिएटल की ज़मीन के लिए कविता

 'रेड इंडियंस' (अब जिन्हें 'नेटिव अमेरिकन्स' या 'मूल अमेरिकी' कहा जाता है) के नेताओं का ज़मीन के प्रति दृष्टिकोण केवल एक ज़मीन का मालिकाना हक़ नहीं था, बल्कि यह प्रकृति, पूर्वजों और जीवन के चक्र से जुड़े गहरे आध्यात्मिक संबंध को दर्शाता है।

सबसे प्रसिद्ध उदाहरण चीफ़ सिएटल (Chief Seattle) का भाषण है, जो उन्होंने 1854 में अमेरिकी सरकार द्वारा उनकी ज़मीन खरीदने के प्रस्ताव के जवाब में दिया था। हालाँकि, इस भाषण के कई संस्करण हैं, लेकिन इसका मूल भाव यही है कि 'आप हवा और पानी को कैसे खरीद सकते हैं?'


हम इस भाषण के कुछ प्रमुख दार्शनिक अंशों को शायरी या काव्यात्मक हिंदी अनुवाद के रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं।

🌿 धरती हमारी माता है: चीफ़ सिएटल की ज़मीन के लिए कविता (काव्यात्मक अनुवाद)

यह कविता प्रमुख रूप से चीफ़ सिएटल के भाषण के सार को हिंदी में काव्यात्मक रूप देती है, जो ज़मीन के प्रति उनके गहरे सम्मान को दर्शाती है।
I. ज़मीन का मोल (The Price of Land)
हमसे पूछते हो तुम, धरती का दाम क्या है?
ज़मीं को बेचते क्यों हो? ये कैसा इंतज़ाम है?
यह विचार हमें अजीब है, यह सौदा बड़ा अनजाना;
तुम हवा को कैसे बेचोगे, आसमाँ की गरमी को कैसे ख़रीदोगे?
न ताज़गी हवा की अपनी, न पानी की चमक हमारी है,
फिर क्यों बेचने की बात है, जब हर शय यहाँ प्यारी है?
नदियों को तुम भाई समझो, जो हमारी प्यास बुझाती हैं,
ये हमारे बच्चों को पालती हैं, और नाव को राह दिखाती हैं।

II. पूर्वजों की राख और धरती (Ancestors and the Earth)
इस ज़मीन का हर हिस्सा, हर कतरा हमारे लिए पाक है,
हर रेत का किनारा, हर मैदान हमारे पुरखों की राख है।

इस धरती के नीचे दफ़न हैं दादाओं की हड्डियाँ,
तुम अपने बुज़ुर्गों को भूल जाते हो, हम सुनते हैं उनके साए की लड़ियाँ।

यह मिट्टी हमारे पुरखों की राख है, ये बात बच्चों को सिखाओ,
कि यह माँ है हमारी धरती, इसे इज़्ज़त से उठाओ।
जो इस धरती को हुआ है, वही उसके बेटों को होगा,
तुमने अगर इसे थूका, तो तुम अपने आप पर ही थूकोगे।

III. जीवन का जाल (The Web of Life)
एक चीज़ हम जानते हैं, कि धरती इंसान की नहीं है,
बल्कि इंसान धरती का है, यही सबसे बड़ी सच्चाई है।
सभी चीज़ें जुड़ी हैं एक-दूसरे से, जैसे ख़ून हमें जोड़ता है,
इंसान ने जीवन का जाल नहीं बुना, वह तो बस एक धागा है।

तुम इस जाल को जो भी दोगे, वही तुम को वापस मिलेगा,
जो तुम करोगे प्रकृति के साथ, वो तुम्हारे साथ ही फलेगा।

हम इस धरती से वैसे प्यार करते हैं, जैसे नवजात माँ की धड़कन से,
अगर हम बेचें, तो तुम भी इसे वैसे ही प्यार देना, पूरे मन से।

क्या आप चाहते हैं कि मैं इस विषय पर एक संक्षिप्त हिंदी ब्लॉग पोस्ट तैयार करूँ जो इस दर्शन को स्पष्ट करे?

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