मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) द्वारा रचित ‘गोदान’ (Godan) केवल एक उपन्यास नहीं, बल्कि भारत के ग्रामीण जीवन की कठोर सच्चाई, सामाजिक विषमताओं और मानवीय संघर्षों का जीवंत दस्तावेज़ है। यह हिंदी साहित्य के विकास का एक उज्जवलतम प्रकाशस्तंभ है, जो आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना 1936 में इसके प्रकाशन के समय था।
📚 गोदान का कथानक: होरी का संघर्ष
‘गोदान’ की कहानी स्वतंत्रता-पूर्व भारत के संयुक्त प्रांत के एक छोटे से गाँव सेमरी के किसान होरी महतो के इर्द-गिर्द घूमती है। होरी एक ईमानदार, मेहनती और धर्मभीरु किसान है, जिसका जीवन का सबसे बड़ा सपना है—एक गाय खरीदना। गाय, जो भारतीय ग्रामीण समाज में धन, प्रतिष्ठा और धर्म का प्रतीक मानी जाती है।
होरी की त्रासदी: होरी अपने इस छोटे से सपने को पूरा करने के लिए भोला से ऋण लेकर गाय खरीदता है, लेकिन यह खुशी क्षणभंगुर सिद्ध होती है। गाँव के प्रभावशाली और ईर्ष्यालु लोग षड्यंत्र रचते हैं, जिसके कारण गाय मर जाती है। इस घटना के बाद होरी पर कर्ज और महाजनों (साहूकारों) का शिकंजा कसता जाता है।
ग्रामीण शोषण: प्रेमचंद ने दिखाया है कि कैसे होरी अपनी लगन, ईमानदारी और दयालुता के बावजूद जमींदारों (रायसाहब अमरपाल सिंह), साहूकारों (झिंगुरी सिंह), और पुरोहितों (पंडित दातादीन) के शोषण का शिकार होता है। वह जीवन भर अपने आत्मसम्मान और सामाजिक परंपराओं को बनाए रखने के लिए संघर्ष करता रहता है।
धनिया का विद्रोही चरित्र: होरी की पत्नी धनिया, जो एक मजबूत और विद्रोही चरित्र की महिला है, अपने परिवार के हक के लिए खुलकर इन शोषक शक्तियों से लड़ती है। धनिया का चरित्र उस समय की भारतीय किसान गृहस्थी के अभाव और संघर्ष को यथार्थपरक ढंग से व्यक्त करता है।
🏙️ शहर और गाँव का समानांतर चित्रण
‘गोदान’ की एक सशक्त विशेषता गाँव की कठोर कथा के साथ-साथ शहर की कथा का संतुलित मिश्रण है।
शहरी पात्र: उपन्यास में प्रोफेसर मेहता, मालती देवी, मिस्टर खन्ना और मिर्ज़ा खुर्शेद जैसे शहरी पात्रों का भी चित्रण है। इनके माध्यम से प्रेमचंद ने आधुनिक शिक्षित समाज की खोखली नैतिकता, बौद्धिक विलासिता और उच्च वर्ग के अंतर्विरोधों को उजागर किया है।
विषमताओं का आईना: गोदान दर्शाता है कि गाँव का किसान जहाँ महाजन और ज़मींदार से शोषित है, वहीं शहर का निम्न-मध्यम वर्ग भी पूंजीवाद और आर्थिक विषमताओं के जाल में फंसा है।
⭐ समीक्षा: क्यों है यह उत्कृष्ट कृति?
‘गोदान’ को भारतीय साहित्य की सर्वश्रेष्ठ कृतियों में से एक माना जाता है, और इसके कई कारण हैं:
यथार्थवादी चित्रण: प्रेमचंद ने स्वतंत्रता-पूर्व भारत में गरीब किसानों के जीवन की एक झलक पेश की है, जो अपनी सादगी और मेहनत के बावजूद गरीबी, कर्ज और अन्याय के दुष्चक्र में फंसे रहते हैं।
कालातीत प्रासंगिकता: उपन्यास का नायक होरी अंत तक अपनी गाय दान करने (गोदान) की इच्छा पूरी नहीं कर पाता और अंत में निर्धनता में ही मर जाता है। वह जिस सामंतवाद का शिकार था, आज वह बैंक और कॉर्पोरेट ऋण के रूप में मौजूद है, इसलिए उपन्यास आज भी प्रासंगिक है।
सरल और सशक्त भाषा: उपन्यास की भाषा सरल, सीधी और ग्रामीण परिवेश से भरी है, जिसमें मुहावरों और लोकोक्तियों का सुंदर प्रयोग है, जो इसे अत्यंत रोचक और हृदयस्पर्शी बनाता है।
अमर संदेश: ‘गोदान’ का मुख्य संदेश यह है कि इंसान की असली पहचान उसके कर्म, ईमानदारी और करुणा में है, न कि धर्म या धन में। यह हमें सिखाता है कि जीवन का अर्थ संघर्ष में नहीं, बल्कि सच्चाई और आत्मसम्मान में छिपा है।
गोदान न केवल भारतीय किसान की आत्मकथा है, बल्कि उस समय के समाज का एक सच्चा दर्पण भी है जिसे हर पाठक को अवश्य पढ़ना चाहिए।
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