जफर गोरखपुरी के कुछ शेर


छत टपकती थी अगरचे फिर भी आ जाती थी नींद
मैं नए घर में बहुत रोया पुराने के लिए 

इरादा हो अटल तो मो'जिज़ा ऐसा भी होता है   
दिए को ज़िंदा रखती है हवा ऐसा भी होता है,…   

ज़फ़र‘ इस से बहतर है ना-आशनाई
कि मुश्किल है ये आशनाई का धन्धा

तुमने ये राज़ किसी से नहीं कहा होगा
मैंने भी अपने दिल में छुपा रखा होगा


   मैं ऐसा खूबसूरत रंग हूं दीवार का अपनी,
 अगर निकला तो धर वालों की नादानी से निकलूंगा ।

दिल लग जाऐ वहां बहार समझते हैं
दिल नही लगे उसे उजाड समझते हैं
लोग आली शान महलो में तडफते है
फूसकी झोपडी में ही सुख समझते हैं।

दिन को भी इतना अँधेरा है मेरे कमरे में 
साया आते हुए डरता है मेरे कमरे में सुबह तक देखना अफ़साना बना देगा 
तुमको इक शख़्स ने देखा है मेरे कमरे में।

देखे करीब से भी तो अच्छा दिखाई दे
इक आदमी तो शहर में ऐसा दिखाई दे।
             

क्या उम्मीद करे उनसे जिन्हें वफ़ा मालूम नहीं 
ग़म देना याद है लेकिन ग़म की दवा मालूम नहीं।

अगर बैठे रिंदों की सोहबत में ज़ाहिद 
तो भूल जाओगे ये पारसाई का धंधा 
परेशान रही उम्र भर पर ना छोड़ा 
तेरी ज़ुल्फ़ ने कज़अदाई का धंधा
मेरे बाद किधर जाएगी तन्हाई 
मैं मरा तो मर जाएगी तन्हाई 
वीराना हूँ आबादी से आया हूँ 
देखेगी तो डर जाएगी तन्हाई 
तन्हाई को घर से रुख़्सत कर तो दूँ 
सोचो किस के घर जाएगी तन्हाई।


मेरे बाद किधर जाएगी तन्हाई 
मैं मरा तो मर जाएगी तन्हाई 
वीराना हूँ आबादी से आया हूँ 
देखेगी तो डर जाएगी तन्हाई 
तन्हाई को घर से रुख़्सत कर तो दूँ 
सोचो किस के घर जाएगी तन्हाई।

ग़म थका हारा मुसाफ़िर है चला जाएगा 
कुछ दिनों के लिए ठहरा है मेरे कमरे में 
दर ब दर दिन को भटकता है तसव्वुर तेरा 
हाँ मगर रात को रहता है मेरे कमरे में।








टिप्पणियाँ